ईंद की ईदी
चारों ओर ईद की तैयारियाँ चल रही थीं। फातिमा एक गरीब महिला थी, जो लोगों के घर काम करके पैसा कमाती थी। उसके साथ उसकी दस साल की बेटी रजिया भी अपनी माँ का काम समेटने में मदद करती थी।
फातिमा डॉ. सिंह के घर काम करती थी। ईद के इस छुट्टी में सिंह साहब अपने परिवार के साथ हजरत निजामुद्दीन जाने का कार्यक्रम बना रहे थे। रजिया चुपचाप एक कोने उनकी जाने की तैयारियाँ करते देख रही थी।
रात में सोते - सोते अचानक कुछ रजिया के मन में आया और उसने अपनी माँ से पूछा कि साहब और उनके परिवार वाले कहाँ जा रहे हैं? तब फातिमा ने बताया कि ईद के छुट्टी पर लाखों की संख्या में लोग हजरत निजामुद्दीन जाते हैं। ये दिल्ली में हैं । मुस्लिम धर्म को मानने लोग बड़ी आस्था के साथ अपने अल्लाह के दर्शन हेतु वहाँ जाते हैं। और हिन्दू लोग भी जाते हैं जिनको अल्लाह में यकीन होता हैं।
अगली सुबह जब फातिमा काम कर रही थी तो रजिया ने पूछा क्या हम भी दिल्ली जा सकते हैं?
तब फातिमा ने उसे समझाते हुए कहा, बेटा! वहाँ जाने के लिए बहुत पैसों की ज़रूरत होती है और हम इतने पैसे कहाँ से लाएँगे?’
तब रजिया ने उदास मन से कहा, तो क्या हमें अल्लाह के दर्शन कभी नहीं होंगे? रजिया अपनी माँ से दिल्ली जाने की ज़िद करने लगी।
इस पर माँ ने उसे ज़ोर से एक थप्पड़ लगा दिया और डाँटते हुए कहा कि मुझे अपना काम करने दो। अगर हमारे पास इतने पैसे होते आज मैँ तुम्हें स्कूल में पढ़ाती – लिखाती। जिससे तुम पढ़ – लिखकर योग्य बन सको , अपने पैरों पर खड़ी हो सको। मैँ कभी भी नहीं चाहूँगी कि बड़े होकर तुम्हें भी इसी तरह घर-घर जाकर काम करना पड़े।
फातिमा और रजिया की ये सब बातें डॉक्टर साहब की पत्नी खड़ी सुन रहीं थीं। वह रजिया के पास आई और सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं कि बेटा!
आज से तुम्हारी पढाई-लिखाई की सारी जिम्मेदारी मैँ लेती हूँ। तुम बस मन लगाकर पढ़ना।
रजिया की तो मानो खुशी का ठिकाना ही न रहा।
अब वह मन लगाकर पढ़ती थी। फातिमा भी अपनी बेटी को खुश देखकर प्रसन्न रहने लगी।
समय बीतता गया.....
रजिया ने अपनी पढाई पूरी कर ली और एक अच्छी कम्पनी में नौकरी भी कर लग गई। अब रजिया अपने और अपनी माँ के सभी सपने पूरे कर सकती थी। और अब फातिमा को भी किसी के घर काम करने की ज़रूरत नहीं है ।
आज ईंद के एक दिन पहले डॉक्टर साहब के घर एक उपहार किसी ने भेजा है उनकी पत्नी ने उपहार खोलकर डॉक्टर साहब से उसकी खूब तारीफ़ कर रही थी तभी उसने से एक चिट्ठी मिली जिस पर लिखा था कुछ वर्षों पहले ईदी के रूप में आपने जो उपहार दिया था, उसके सामने इस उपहार का कोई मोल नहीं है।
मोहब्बत हो तो चेहरे पर मुस्कान कायम ।
रखे क्यूकी नकाब और नसीब सरकता जरूर है ।।
चारों ओर ईद की तैयारियाँ चल रही थीं। फातिमा एक गरीब महिला थी, जो लोगों के घर काम करके पैसा कमाती थी। उसके साथ उसकी दस साल की बेटी रजिया भी अपनी माँ का काम समेटने में मदद करती थी।
फातिमा डॉ. सिंह के घर काम करती थी। ईद के इस छुट्टी में सिंह साहब अपने परिवार के साथ हजरत निजामुद्दीन जाने का कार्यक्रम बना रहे थे। रजिया चुपचाप एक कोने उनकी जाने की तैयारियाँ करते देख रही थी।
रात में सोते - सोते अचानक कुछ रजिया के मन में आया और उसने अपनी माँ से पूछा कि साहब और उनके परिवार वाले कहाँ जा रहे हैं? तब फातिमा ने बताया कि ईद के छुट्टी पर लाखों की संख्या में लोग हजरत निजामुद्दीन जाते हैं। ये दिल्ली में हैं । मुस्लिम धर्म को मानने लोग बड़ी आस्था के साथ अपने अल्लाह के दर्शन हेतु वहाँ जाते हैं। और हिन्दू लोग भी जाते हैं जिनको अल्लाह में यकीन होता हैं।
अगली सुबह जब फातिमा काम कर रही थी तो रजिया ने पूछा क्या हम भी दिल्ली जा सकते हैं?
तब फातिमा ने उसे समझाते हुए कहा, बेटा! वहाँ जाने के लिए बहुत पैसों की ज़रूरत होती है और हम इतने पैसे कहाँ से लाएँगे?’
तब रजिया ने उदास मन से कहा, तो क्या हमें अल्लाह के दर्शन कभी नहीं होंगे? रजिया अपनी माँ से दिल्ली जाने की ज़िद करने लगी।
इस पर माँ ने उसे ज़ोर से एक थप्पड़ लगा दिया और डाँटते हुए कहा कि मुझे अपना काम करने दो। अगर हमारे पास इतने पैसे होते आज मैँ तुम्हें स्कूल में पढ़ाती – लिखाती। जिससे तुम पढ़ – लिखकर योग्य बन सको , अपने पैरों पर खड़ी हो सको। मैँ कभी भी नहीं चाहूँगी कि बड़े होकर तुम्हें भी इसी तरह घर-घर जाकर काम करना पड़े।
फातिमा और रजिया की ये सब बातें डॉक्टर साहब की पत्नी खड़ी सुन रहीं थीं। वह रजिया के पास आई और सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं कि बेटा!
आज से तुम्हारी पढाई-लिखाई की सारी जिम्मेदारी मैँ लेती हूँ। तुम बस मन लगाकर पढ़ना।
रजिया की तो मानो खुशी का ठिकाना ही न रहा।
अब वह मन लगाकर पढ़ती थी। फातिमा भी अपनी बेटी को खुश देखकर प्रसन्न रहने लगी।
समय बीतता गया.....
रजिया ने अपनी पढाई पूरी कर ली और एक अच्छी कम्पनी में नौकरी भी कर लग गई। अब रजिया अपने और अपनी माँ के सभी सपने पूरे कर सकती थी। और अब फातिमा को भी किसी के घर काम करने की ज़रूरत नहीं है ।
आज ईंद के एक दिन पहले डॉक्टर साहब के घर एक उपहार किसी ने भेजा है उनकी पत्नी ने उपहार खोलकर डॉक्टर साहब से उसकी खूब तारीफ़ कर रही थी तभी उसने से एक चिट्ठी मिली जिस पर लिखा था कुछ वर्षों पहले ईदी के रूप में आपने जो उपहार दिया था, उसके सामने इस उपहार का कोई मोल नहीं है।
मोहब्बत हो तो चेहरे पर मुस्कान कायम ।
रखे क्यूकी नकाब और नसीब सरकता जरूर है ।।
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